बच्‍चों पर जलवायु परिवर्तन का ये असर जानकर चौंक जाएंगे

बच्‍चों पर जलवायु परिवर्तन का ये असर जानकर चौंक जाएंगे

सेहतराग टीम

जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम बन चुकी है। हाल ही में स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर' 2019 द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्‍य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है। जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों में मानसिक बीमारियों की समस्या पैदा हो रही है। आजकल बच्चों में चिंता, दुख और डिप्रेशन जैसी समस्‍याओं की सीधी वजह जलवायु परिवर्तन है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों में जलवायु परिवर्तन के कारण 'इको-एंजायटी' नाम की मानसिक बीमारी जन्म ले रही है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों को लगने लगा है कि जब तक वे बड़े होंगे तब तक जलवायु परिवर्तन के कारण यह धरती नहीं बचेगी।

हाल ही में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा है कि बच्चों के व्यवहार में आ रहे बदलाव का कारण कहीं न कहीं खराब जलवायु भी है। वहीं बाल अधिकारों की वैश्विक संस्था 'सेव द चिल्ड्रेन द्वारा' जारी 'फीलिंग द हीट-चाइल्ड सरवाईवल इन चेजिंग क्लाइमेट' नामक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों की सेहत को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है। रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों पर ये असर पड़ेंगे:

डायरिया की समस्या:

जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्‍य से जुड़े मुद्दों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं की मानें तो एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में डायरिया के मामलों में 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा जल-संक्रमण से होने वाली अन्य बीमारियों की तादाद में भी बढ़ोतरी होगी। रिपोर्ट के अनुसार डायरिया के ज्यादातर मामलों में मूल कारण साफ-सफाई की कमी और स्वच्छ पेयजल का अभाव है। दुनिया में तकरीबन 1 अरब 30 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं है और अगर जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप विश्व का तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेट और बढ़ गया तो 1 अरब 30 करोड़ अतिरिक्त आबादी साफ पेयजल से महरूम होगी। इससे डायरिया और जल के संक्रमण से होने वाली बीमारियों का प्रकोप तेज होगा।

मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के प्रकोप में बढ़ोतरी-

इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन, आबादी की बढ़ोतरी, जमीन के इस्तेमाल के बदलते तरीके और जंगलों की कमी वाली स्थितियां एक साथ मिलकर मलेरिया और डेंगू जैसी कई बीमारियों के प्रकोप में इजाफा करेंगी और इसका सर्वाधिक शिकार बच्चे होंगे। गौरतलब है कि सालाना 10 लाख बच्चे सिर्फ मलेरिया की चपेट में आकर मरते हैं। इनमें पांच साल से कम उम्र के बच्चों की तादाद 80 फीसदी होती है। यदि दुनिया में इसी तरह प्रकृति, जल और वायु के मुद्दों को लेकर लोक चेतना को नहीं बढ़ाया गया तो हम अपने ही बच्चों को इन खतरनाक बीमारियों से बचा नहीं पाएंगे।

दिमागी बुखार और जानलेवा इंफेक्शन का फैलना:

किसी मक्खी या मच्छर से फैलने वाली नई बीमारियां हर साल पैदा हो रही है, जिससे सबसे बच्चे ज्यादा पीड़ित होते हैं। दिमागी बुखार और मौसमी इंफेक्शन कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का ही असर है। एकदम से किसी मौसम में फैलने वाले इंफेक्शन किसी खास टेंप्रेचर में ही फैलते हैं। जिस तरह से हम पृथ्वी का दोहन कर रहे हैं, इससे यह सारी बीमारियां और फैलेंगी और हर बार यह नए रूप में आएंगी।

 

मानसिक रोग और डिप्रेशन:

यह बहुत दुखद है कि आजकल के छोटे-छोटे बच्चे भी मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं। वह अपने उम्र से ज्यादा मेच्यौर होते हैं और इस तरह वह बड़ी जल्दी ही मानसिक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। अचानक से किसा भी बात पर गुस्सा करना, चिड़चिड़हाट और दुखी हो जाना यह सब मानसिक बीमारियों की तरफ ही संकेत करती हैं। बच्चों में अवसाद या डिप्रेशन जैसी बीमारियां प्रदूषित शहरों में ज्यादा फैल रहीं हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि जलवायु परिवर्तन का सच में बच्चों के मानसिक स्वास्‍थ्‍य पर असर पड़ रहा है।

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